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The magic of thinking big(summary)

आपने शायद ये बात कई बार सुनी होगी- थिंक बिग! थिंक आउट ऑफ़ बॉक्स! डू मोर एंड बी मोर. ये काफी कॉमन मोटिवेशनल एडवाइसेस है जो ऑलमोस्ट हर कोई दुसरे को देता है. और हम भी इन बातो पर बिलीव करके यही उम्मीद करते है कि ये सच हो. लेकिन क्या हम वाकई में जानते है कि ये एडवाइस काम करेगी या नहीं ? क्या आपको वाकई लगता है कि थिंकिंग बिग आपको वो सक्सेस दिला सकती है जो आप चाहते है? अगर आप ऐसे लोगो में से है जो यही सवाल खुद से पूछते है, तो इनके आंसर आपको इस बुक में मिलेंगे. थिंकिंग बिग का मैजिक आपकी हेल्प करेगा ये रियेलाइज करने में कि आपकी सक्सेस में आपकी थिंकिंग कितनी मैटर करती है. आप जो है और जो बनना चाहते है, इसमें थिंकिंग काफी बड़ा रोल प्ले करती है. जो आप डिज़र्व करते है उसे हासिल करने में आपकी थिंकिंग ही हेल्प करेगी. तो “मैजिक ऑफ़ थिंकिंग बिग” नाम की इस बुक में आपको वो बेसिक प्रिंसिपल और कॉन्सेप्ट्स सीखने को मिलेंगे जो रियल लाइफ सिचुएशन पर बेस्ड और टेस्टेड है. ये आपको शो कराएगी कि आपको क्या करना है और कैसे उन प्रिंसीप्लस को अप्लाई करके आप बिग सक्सेस और बिग हैप्पीनेस पा सकते है.


1. To sabse pehle aata hai बीलीव यू केन एंड यू विल सक्सीड (BELIEVE YOU CAN AND YOU WILL SUCCEED) 

सक्सेस हर किसी की लाइफ का गोल होता है. फिर चाहे सक्सेस एजुकेशन की हो या करियर की या फेमिली लाइफ में, इन जर्नल हर कोई सक्सेसफुल होना चाहता है. ज्यादातर लोगो को सक्सेस एक आउट ऑफ़ रीच और इम्पोसिबल चीज़ लगती है. लेकिन रियलटी में सक्सेस का फार्मूला काफी सिम्पल है, बस खुद पे बीलीव करना स्टार्ट कर दो कि आप कर सकते हो. और जब आप बिलिव् करने लगोगे कि आप कुछ कर सकते हो तब आप वाकई में करोगे. और एक बार जब आपने करने की ठान ली तो kisi cheez ko kaise karna hai आपको खुद समझ में आ जायेगा. ek आदमी टाई एंड डाई की कंपनी में काम कर रहा था, इस काम से वो ठीक-ठाक पैसे कमा लेता था लेकिन वो सेटिसफाईड नहीं था. वो अपनी वाइफ और दो बच्चो के साथ एक स्माल हाउस में रह रहा था. उनके paas इतना पैसा नहीं था कि एक बड़ा घर ले सके या अपनी बाकि ज़रूरते पूरी कर सके. जैसे-जैसे दिन गुजरते जा रहे थे, वो आदमी अपनी लाइफ को लेकर dukhi होता गया और अपनी फेमिली को khushi ना देने की वजह से वो सबसे ज्यादा हर्ट होता था. कुछ सालो ke बाद उसे एक दूसरी जगह जॉब मिल गयी. यहाँ भी उसका काम सेम था लेकिन एक जगह डिफरेंट थी. ये जगह उसके घर से बहुत दूर थी लेकिन उसने सोचा क्यों ना ट्राई किया जाए. जॉब इंटरव्यू के एक दिन पहले वो आदमी कुछ सक्सेसफुल लोगो से मिला जिन्हें वो जानता था. उसने खुद से पुछा कि उन लोगो के पास ऐसा क्या है जो उसके पास नहीं है. उस आदमी को पूरा बीलिव था कि वो लोग अपनी इंटेलीजेन्स, पर्सनेलिटी या एजुकेशन की वजह से सक्सेसफुल नहीं हुए बल्कि इसलिए हुए क्योंकि उन्होंने इनिशिएटिव लिया था! उन सबको खुद पर भरोसा था कि वो कुछ कर सकते है. नेक्स्ट मोर्निंग वो आदमी पूरे कांफिडेंस के साथ जॉब इंटरव्यू के लिए गया. और उसने बड़ी हिम्मत के साथ 300% zaada सेलरी की भी डिमांड की. वो इतनी सेलरी isiliye डिमांड कर रहा था क्योंकि उसे खुद पर भरोसा था कि वो इतना डिजर्व करता है. और उसके इस कांफिडेंस की वजह से उसे वो जॉब मिल गयी. तो आप भी खुद पे बिलिव् करो कि आप कर सकते हो. बिलीव करो कि दूसरो की तरह आपको भी स्कसेस मिल सकती है. हमेशा सेकंड क्लास मत बने रहो. अपनी वर्थ पहचानो और बिलीव करो कि आप इससे ज्यादा कर सकते हो और बन सकते हो! जब आप बड़ा सोचना शुरू करोगे तो बड़ी सक्सेस ऑटोमेटिकली मिलने लगेगी.

2. Next principle kehta hai
क्योर योरसेल्फ ऑफ़ एक्सक्यूजिस्टिस, द फेलर डिजीज (CURE YOURSELF OF EXCUSITIS, THE FAILURE DISEASE

अगर हम दूसरो को ऑब्जर्व और स्टडी करे तो पता चलेगा कि अनसक्सेसफुल लोग एक्चुअल में एक deemaag ko band karne ki bimari के शिकार है. इस डिजीज को excusitis (एक्सक्यूजिस्टिस) कहते है. जो लोग इससे सफर करते है उन्हें ये नजर नहीं आती लेकिन हम अक्सर अपनी लाइफ के कुछ एस्पेक्ट्स को कंसीडर करते है और उन्हें अपनी फेलियर का जिम्मेदार मानते है. जब लोग हमसे पूछते है कि क्या हुआ, हम प्रोग्रेस क्यों नहीं कर रहे तो हम कुछ ऐसे bhaane ginva देते है—“मेरे साथ health इश्यूज है या फिर मै काफी ओल्ड हूँ या फिर मै उतना इंटेलीजेंट नहीं हूँ या मै तो अनलकी हूँ”
एक बार एक सेल्स ट्रेनिंग प्रोग्राम के दौरान एक ट्रेनी थी जिसका नाम था सेसिल (Cecil.) वो करीब 40 saal की थी और वो मेंनूफेक्चरर के रीप्रजेंटेटिव के तौर पर एक बैटर जॉब ढूंढ रही थी. लेकिन सेसिल में कोंफीडेंस की बड़ी कमी थी क्योंकि उसे लगता था कि वो काफी ओल्ड है इस जॉब के लिए. वो इस बात को लेकर इतनी convinced थी कि जो बनना चाहती थी, कभी नहीं बन पाई क्योंकि उसे लगता था कि अब बहुत देर हो गयी है. बाद में सेम ट्रेनिंग के दौरान होस्ट ने सेसिल से पुछा कि क्या उसे पता है कि आदमी की प्रोडक्टिव लाइफ कब स्टार्ट होती है और कब एंड. तो सेसिल ने प्रेक्टिकल आंसर देते हुए कहा कि आदमी 20 से लेकर 70 साल तक काम कर सकता है. और वो खुद ही अपने जवाब से हैरान थी! सेसिल को रियेलाइज हुआ कि अभी तो वो अपनी प्रोडक्टिव एज के हाफवे भी नहीं पहुंची है, और फिर भी वो आगे बढ़ने से घबरा रही है. 
सक्सेस की कोई बाउंड्री नहीं होती. हमे आगे बढकर अपनी failure mentality को दूर करना ही होगा चाहे वो हमारे अंदर कहीं भी छुपी हो.

3. Next principle kehta hai ki
बिल्ड कांफिडेंस एंड डिस्ट्रॉय फियर (BUILD CONFIDENCE AND DESTROY FEAR
कुछ लोगो के लिए फियर सिर्फ माइंड का गेम है. लेकिन सच तो ये है कि फियर रियल होता है और इससे पहले कि ये हमे कण्ट्रोल करे, हमे इसे पहचानना होगा. 

नेवी रीक्रूट्स के एक ग्रुप का स्विमिंग एबिलिटी का टेस्ट लिया गया. उनमे से ज्यादातर यंग बॉयज थे जो पानी की गहराई से डरते थे, यहाँ तक कि कुछ फीट गहरे पानी से भी. एक एक्सरसाइज़ में उन्हें 15 feet से पानी में जंप मारने को बोला गया. पानी में जंप मारने की किसी की हिम्मत नहीं हुई. नेवी ऑफिसर ने वालंटियर्स को आगे आने को बोला लेकिन कोई नहीं आया. ऑफिसर को एक आईडिया आया, उसने एक रिक्रूट का नाम लिया और उसे अपने पास बुलाया. जब वो रीक्रूट उसके पास आया तो ऑफिसर ने उसे धीरे से कुछ कहा और वाटर पूल में धक्का दे दिया. ये देखकर सारे रीक्रूट्स शॉक्ड रह गए, जिस रीक्रूट को धक्का दिया गया था वो भी तक पानी से ऊपर नहीं आया था. सब डरे सहमे खड़े थे कि अब क्या होगा, तभी अचानक वो रीक्रूट पानी में स्ट्रगल करता नजर आया. वो पानी से बाहर निकलने की पूरी कोशिश कर रहा था, एक प्रोफेशनल स्विमर की हेल्प से उसे पूल से निकाला गया. जब ऑफिसर ने उससे पुछा कि क्या वो ट्रेनिंग कंटीन्यू करना चाहेगा तो रीक्रूट ने बड़े कॉंफिडेंट के साथ हाँ बोला! और उसने ये भी बोला की वो फिर से पानी में जंप करने को रेडी है ताकि वो अपना डर दूर कर सके और स्विमिंग सीख सके. तो देखा आपने! एक्शन ही फियर का इलाज है. फियर ही हमे बिलीव करने से रोकता है कि हम कुछ कर सकते है. ये हमे पोसीबिलिटीज की तरह बढ़ने से मना करता है. पोजिटिव थौट्स के थ्रू आप अपने कांफिडेंस को बिल्ड करके फियर को अपने माइंड से रीमूव कर सकते है. चीजों का ब्राईट साइड देखने की कोशिश करो और अपनी प्रोब्लम्स को करेज और ऑप्टीमिज्म के साथ फेस करो. जब हम होप करेंगे और एक्चुअल में कोई एक्शन लेंगे तो आपके अंदर का डर ऑटोमेटिकली दूर हो जाएगा.

4. Next Principle Kehta hai
हाउ टू थिंक बिग yaani bada kaise soche
एक रिच आदमी अपनी एक्सपेंसिव कार चला रहा था. पास के एक रेस्तरोरेंट में कार पार्क करने के बाद जब वो अपने अमीर फ्रेंड्स से मिलने जा रहा था तो उसने नोटिस किया कि एक लड़का उसकी ब्रांड न्यू कार को बड़े गौर से देख रहा था. जब रिच आदमी उस लड़के को देखकर मुस्कुराया तो लडके ने उसे कहा कि उसकी कार कितनी कूल और एक्सपेंसिव है. इस पर रिच आदमी ओवर कॉंफिडेंस से बोला” ये उतनी भी एक्सपेंसिव नहीं है, ये तो उसके ब्रदर ने उसे गिफ्ट की है”. उस आदमी की बात सुनकर लड़का कुछ नहीं बोला. रिच आदमी ने उससे पुछा कि क्या वो भी ऐसी एक्सपेंसिव कार लेने का ड्रीम देख रहा है? लेकिन उस लड़के का जवाब सुनकर वो आदमी हैरान रह गया. “नहीं, बल्कि ये सोच रहा हूँ कि मै आपके ब्रदर की तरह अमीर कैसे बन सकता हूँ”? 
अगर हम चीजो को ऐसे देखे जैसे वो हो सकती है नाकि जैसे वो अभी है तो हम उनमे एक ग्रेट वैल्यू एड कर सकते है. इसलिए अपना विजन स्ट्रेच करो और जो दिख रहा है सिर्फ उसी पर मत अटको बल्कि विजुएलाइज करो कि फ्यूचर में क्या हो सकता है. और अपनी सक्सेस की एक बिगर और बैटर पिक्चर इमेजिन करो.

5. Next priciple aata hay ki
creatively kaise soche
क्रिएटिव थिंकिंग सक्सेस की रीक्वायरमेंट है. और क्रिएटिव वे में सोचने के लिए हम जो भी करे उसे करने के कुछ नए और इम्प्रूव्ड तरीके सोचने होंगे. क्रिएटिव थिंकिंग का मीनिंग है बैटर ढंग से सोचना. ये वो थिंकिंग है जो हमेशा हमे एक बैटर वर्ल्ड बनाने के लिए encourage (एंकरेज) करती है. एक आदमी के पास दो लाइफ इंश्योरेंस सेल्समेन आये. दोनों सेल्समेन उसे एक इंश्योरेंस प्रोग्राम के बारे में बता रहे थे, दोनों ने उस आदमी से प्रोमिस किया कि वो उसे एक बढ़िया प्लान ऑफर करेंगे. फर्स्ट सेल्समेन ने उस आदमी को एक ओरल प्रजेंटेशन दी, उस आदमी की जो रीक्वायरमेंट थी उसके हिसाब से उसने प्लान अपने वर्ड्स के थ्रू बताया. लेकिन उस आदमी को कुछ समझ नहीं आया! सेल्समेन ने उसे टैक्स, ऑप्शन्स, सोशल सिक्योरिटी के बारे में एक्सप्लेन किया और बाकि टेक्नीकल डिटेल्स भी दी. सारी बाते सुनने के बाद वो आदमी और भी कन्फ्यूज़ हो गया इसलिए उसने उस सेल्समेन को प्लान लेने से मना कर दिया. 
अब सेकंड सेल्समेन की बारी आई. उसने एक डिफरेंट अप्रोच यूज़ की. उसने सारी डिटेल्स बड़े इंटरेस्टिंग और क्रिएटिव वे में एक डायाग्राम के थ्रू शो की. उस आदमी को सेकंड सेल्समेन का प्रोपोजल ईजीली समझ आ गया था इसलिए उसने उसी टाइम इंश्योरेस डील साइंन कर दी. 
तो जब आपके अंदर वो एबिलिटी होगी कि आप क्रिएटिव वे में सोच सके, तब आपकी सोच का दायरा भी फैलेगा और नए नए आईडिया भी आने लगेंगे जो आपको अपने गोल के बेहद करीब ले जायेंगे. अपने थौट्स को फ्रीडम दे! इम्पोसिबल वर्ल्ड अपनी डिक्शनरी से निकाल दे. नए-नए experiments करो और क्राउड से अलग अपनी पहचान बनाओ. टाकिंग और लिसनिंग की प्रैक्टिस करो और ऐसे लोगो के साथ ज्यादा से ज्यादा कनेक्ट करो जो खुद क्रिएटिव थिंकर है.

6. Next principle kehta hai
ki aap vahi ho jo aap sochte ho aap ho
हमारे सोचने का तरीका ही तय करता है कि हम कैसे एक्ट करते है और दुसरे लोग हमे कैसे ट्रीट करेंगे. जब हम खुद को जानने लगते है तो ये चीज़ रिफ्लेक्ट होती है कि लोग हमारे सामने कैसे एक्ट करेंगे. सेम यही बात तब होती है जब हमे पता होता है कि हम कितने इम्पोर्टेंट है, तब हम खुद को इम्पोर्टेंट शो कराते है और लोग भी हमे इम्पोर्टेंट समझते है. एक रात, एक बेटे ने अपने फादर को बताया कि वो अपने स्कूल प्ले में लोन रेंजर का केरेक्टर कर रहा है. ये सुनकर फादर बड़ा एक्साइटेड और खुश हुआ. फिर लडके ने कहा बस एक प्रोब्लम है कि उसके पास हेट नहीं है. फादर तुरंत अपने रूम में गया और एक पुरानी सी काऊबॉय हेट लेकर आया. उसने अपने बेटे से बोला कि ये हेट काम आ जाएगी. लेकिन बेटा नहीं माना उसने जिद पकड ली कि उसे सिर्फ लोन रेंजर वाली हेट ही चलेगी, कोई काऊबॉय हेट नहीं. और फादर समझ गया कि उसका बेटा एक्जेक्टली क्या चाहता है. 
तो आप जो खुद के बारे में सोचते हो वही आपकी इमेज बन जाती है. जो हम अपने बारे में सोचते है वो हमारे लिए एक मोटीवेश्न्ल टूल बन जाता है जो हमे एक्जेक्टली वही पर्सन बनने में हेल्प करता है. इसलिए सोचो और बनो! जितना हम सोच भी नहीं सकते हमारे माइंड में वो पॉवर होती है तो जब हम इसे यूज़ करेगे, ये डिसाइड करने के लिए कि हम कौन है, तो सोचो ज़रा क्या होगा!


7. Next principle kehta hai MANAGE YOUR ENVIRONMENT: GO FIRST CLASS
पैसे सेव करने के चक्कर में एक आदमी ने चार महीनो तक एक चीप रेस्ट्रोरेन्ट में खाना खाया. उस जगह में ज़रा भी सफाई नहीं थी, खाना भी बकवास था और सर्विस का तो बुरा हाल था लेकिन पैसे बचाने के लिए वो आदमी बगैर कंप्लेंट किये चुपचाप खा लेता था. एक दिन उसने फ्रेंड ने उसे टाउन के सबसे बढ़िया रेस्तरोरेंट में लंच के लिए बुलाया. वहां पर उसके फ्रेंड ने बिजनेसमेन का लंच आर्डर किया तो उस आदमी ने भी सेम आर्डर कर दिया. उसके बाद जो हुआ उसे देखकर वो आदमी हैरान रह गया . उसके सामने बढ़िया खाना परोसा गया था, सर्विस भी एकदम फर्स्ट क्लास थी, बढ़िया enviornment था. और सबसे बड़ी बात तो ये कि यहाँ का प्राइस उससे बस थोडा ही ज्यादा था जितना वो उस चीप रेस्ट्रोरेन्ट में पिछले चार मंथ्स से पे कर रहा था. उस आदमी को एक बड़ा लेसन मिल गया था. फर्स्ट क्लास बनने के लिए पहले आपको फर्स्ट क्लास की तरह बिहेव करना पड़ेगा! हमें लाइफ में खुद को एन्जॉय करने से रोकना नहीं चाहिए. फर्स्ट क्लास का मतलब है बेस्ट, और यही हम बनना चाहते है. खुद के बारे में यही सोचो कि आप फर्स्ट क्लास डिज़र्व करते हो—फर्स्ट क्लास सर्विस, फर्स्ट क्लास जॉब, फर्स्ट क्लास सेलेरी और फर्स्ट क्लास लाइफ. स्माल थिंकिंग वाले लोगो को अपने रास्ते की रुकावट मत बनने दो. ऐसे लोगो के साथ रहो जो पोजिटिव है और जो फर्स्ट क्लास वे ऑफ़ थिंकिंग रखते है. खुद पर बिलीव करो कि आप हर जगह और हर चीज में फर्स्ट क्लास बन सकते हो.

8. Next principle keta hai ki apne attitude ko apna dost bna lo
एटीट्यूड ही सब कुछ है! राइट एटीट्यूड ही हमे सक्सेस की तरफ ले जाता है. एक ऑप्टीमिस्टिक, और motivated पर्सन में जो बात है वो किसी सेल्फ सेंटरड, नेगेटिव और अनग्रेटफुल इन्सान में कहाँ! तो एटीट्यूड एक तरह से हमारे फ्रेंड की तरह है जिसे अगर हम एक राइट वे में डेवलप करते है तो ये हमें सक्सेस की उंचाई पर पंहुचा सकता है. 
वर्ल्ड ओलंपिक्स के दौरान एक naye talwaar baaz ladke का मुकाबला एक आल टाइम विनर के साथ हुआ जिसमे उसने आल टाइम विनर को हरा कर वर्ल्ड फेंसिंग चैम्पियन जीत ली. दोनों के बीच काफी डिफ़रेंस था क्योंकि आल टाइम विनर कई सालो की प्रैक्टिस और एक्स्पिरियेंश के बाद इस मुकाम तक पंहुचा था लेकिन naye ladke ne ने अपना बेस्ट परफोर्मेंस दिया और चैपियन के साथ बड़ी क्लोज फाइट की. हर राउंड के बाद गेम हार्ड होता गया और जब दोनों लास्ट राउंड में पहुचे तो दोनों के बीच टाई हो गया था. दोनों प्लेयर्स को एक शोर्ट टाइम दिया गया. vo naya talwaarbaaz जीतने के लिए काफी स्ट्रगल कर रहा था, वो खुद से सिर्फ एक ही चीज़ बोलता रहा : आई केन डू दिस, मै ये कर सकता हूँ”! और फाइनल राउंड में us ladke के पोजिटिव एटीट्यूड और स्ट्रोंग मोटिवेशन ने उसके सामने जीत का रास्ता खोल दिया और इस तरह वो आल टाइम चैम्पियन को हरा कर खुद चैम्पियन बन गया. तब से वो ओलंपिक्स का” आई केन डू दिस” मेन के नाम से फेमस हो गया और उसने आल ओवर वर्ल्ड के दुसरे एथलीट्स को भी इंस्पायर किया. जब हमारा एटीट्यूड पोजिटिविटी और गुड विल पर फोकस्ड रहता है तो हम कभी गलत नहीं हो सकते. हमे हर हाल में सक्सेस मिलेगी! हमारा एटीट्यूड ही हमे मैक्सीमम इफेक्टिवनेस की तरफ ले जाता है और हमारे करियर और लाइफ में गुड रिजल्ट्स जेनरेट करता है.


9. Next principle kehta hai ki 
THINK RIGHT TOWARDs PEOPLE
जिन लोगो के अपनी फेमिली और फ्रेंड्स के साथ बेस्ट रिलेशनशिप होते है, वही लोग सबसे ज्यादा खुश रहते है. या यूं भी बोल सकते है कि हैप्पीएस्ट लोगो के ही बेस्ट रिलेशनशिप होते है. अपने आस-पास के लोगो के साथ कनेक्शन हमारी सक्सेस में इतना इम्पोर्टेंट है कि हम दूसरो को कैसे ट्रीट करते है, ये चीज़ हमे डीपली सोचनी चाहिए. एक इन्शोय्रेस एजेंट ने एक डिफिकल्ट प्रोस्पेक्ट को कॉल करके मिलने का टाइम माँगा. एजेंट उस प्रोस्पेक्ट के दरवाजे पर अभी पहुंचा ही था कि उस आदमी ने उलटे-सीधे रीमार्क्स देने शुरू कर दिए. वो आदमी बिना रुके काफी कुछ बोलता चला गया और फाइनली उसने एजेंट को बोला कि आज के बाद कभी दुबारा उसके घर आने की हिम्मत ना करे. एजेंट चुपचाप सब सुनता रहा और जब उस आदमी ने अपनी बात खत्म की तो एजेंट कुछ सेकंड्स तक उसकी आँखों में देखता रहा, फिर उसने बड़े सॉफ्ट वौइस् में बोला” “magar मिस्टर एस, aaj mein aapko ek dost ki tarah call karunga” और नेक्स्ट डे उस आदमी ने एजेंट से $250,000 की एंडोवमेंट पालिसी (endowment policy ) खरीदी. 
दूसरो के साथ कनेक्ट करने और रिलेट होने की हमारी एबिलिटी काफी मैटर करती है. हमे गुड रिलेशनशिप में इन्वेस्ट करना चाहिए, क्योंकि ये बहुत ज़रूरी है कि हम दूसरो के साथ एक काइंड और फ्रेंडली वे में बिहेव करे. और हमे ये भी समझना होगा कि हम दूसरो के डिफरेंसेस और इम्पेर्फेक्शन्स को एक्सेप्ट करना सीखे. हमे दूसरो को ब्लेम किये बगैर उनके साथ हमेशा एक रिस्पेक्टेड वे बिहेव करना होगा चाहे हम खुद कितना भी सेटबैक एक्स्पिरियेंश करे.

10. Next Principle Kehta hai
गेट द एक्शन हैबिट (GET THE ACTION HABIT
जैसा हमने पहले भी मेंशन किया कि डर का इलाज़ एक्शन है. एक्शन se sirf dar hi khatam nhi hoga बल्कि ये एक मेन फैक्टर भी है जो एक एम्प्लोयर kisi employee में देखता है. सिर्फ सोचने भर से कुछ नहीं होता, ये एक्शन ही जो रियेल और विजिबल रिजल्ट्स जेनरेट करता है. 
औरतो को जो काम मोस्ट अनप्लीजेंट लगते है वही मदर एम् को भी लगते थे—जैसे बर्तन धोना, लेकिन उसने एक पोजिटिव अप्रोच डेवलप की थी कि कैसे अपना टास्क जल्दी फिनिश करना है ताकि वो अपने मनपसंद कामो के लिए टाइम निकाल सके. एक दिन जब मदर एम् के सामने एक टेबल भरकर गंदे बर्तनों का ढेर लगा था तो वो एकदम से उठी और कुछ बर्तन लेकर जाने लगी. उसकी फेमिली के कुछ मेंबर्स ने उसे कहा कि पहले थोडा रेस्ट कर लो, फिर बर्तन साफ़ कर लेना. लेकिन मदर एम् फोकस्ड और डीटरमाइन थी. अपने आगे इतना बड़ा बर्तनों का ढेर देखकर उसे एक मिनट के लिए भी नहीं सोचा और अपने काम में जुट गयी. और कुछ ही देर में वो सारे बर्तन धोकर फ्री हो गयी थी. 
अपने टास्क को फिनिश करने का सबसे इफेक्टिव तरीका यही है कि सिंपली उस टास्क पर जुट जाओ फिर चाहे वो हमे पंसद हो या नापसंद हो. जो भी टास्क है उस पर तुरंत एक्श. न लो ! अपने माइंड में negative थौट्स आने ही मत दो.


12. Next article aata hai
हाउ टू टर्न डीफीट इनटू विक्ट्री (HOW TO TURN DEFEAT INTO VICTORY
ग्रेट लिओनेल बैर्रीमोर को कोई नहीं भूल सकता, 1936, में एक एक्सीडेंट में मिस्टर बैर्रीमोर का हिप फ्रेक्चर हुआ जो कभी ठीक नहीं हो पाया. बाद में उन्हें आर्थराईटिस की बीमारी ने उनकी कंडिशन और भी खराब कर दी थी. लेकिन इस सबके बावजूद मिस्टर बैर्रीमोर कभी रुके नहीं, उन्हें जो पसंद था वो करते, वो व्हीलचेयर पर बैठकर एक्टिंग करते थे. नेक्स्ट 18 इयर्स तक सेवियर पेन होने के बावजूद भी मिस्टर बैरीमोर ने कई मूविज में सक्सेसफुल रोल्स प्ले किये और वो भी अपनी व्हील चेयर में बैठकर. कई सारी मूवीज में तो उन्होंने लीड रोल भी प्ले किये थे और उन्हें बेस्ट एक्टर का अकेडमी अवार्ड भी मिल चूका है. उन्होंने अपनी लाइफ के सेटबैक को कभी अपने रास्ते की रुकावट नहीं बनने दी और आगे बढ़ते गए और सक्सेस हासिल करते गए. 
हम सब की लाइफ में डिफीट एक चेलेंजिंग फेस होता है. हालाँकि डिफीट से ऊपर uthna ईजी नहीं होता लेकिन इससे ओवरकम करने का एक ही तरीका है कि इसे फेस किया जाए. और रियेलाईज करो कि तुम एक्चुअल में कभी हारे नहीं हो. डीफीट बस एक स्टेट ऑफ़ माइंड है. इसलिए डीफीट की हर स्टोरी से कुछ ना कुछ लर्न करो. चीजों को पोजिटिव लाईट में देखने के लिए खुद को ट्रेन करो और discouragement की फीलिंग को डिस्ट्रॉय करो. आप काफी कुछ सीख सकते हो जब आप ये रियेलाइज करोगे कि डीफीट असल में कोई acchi स्टेट नहीं है इसलिए इस स्टेट से बाहर निकलने की कोशिश करो.  

13. Next Principle kehta hai ki यूज़ गोल्स टू हेल्प यू ग्रो (USE GOALS TO HELP YOU GROW
गोल एक ऑब्जेक्टिव या पर्पज होता है. और एक डिजायर भी होती है और एक प्लान भी जिससे हमे सक्सेस अचीव होती है. जब आप कुछ अचीव् करना चाहते है तो गोल सेट करते है. गोल सेट करना बहुत इम्पोर्टेंट है क्योंकि ये हमे कुछ करने का पर्पज और मोटीवेशन देता है. 
मिसेज डी का बेटा जब 2 साल का था तो उन्हें कैंसर हो गया था. उनके हजबैंड की भी बस तीन महीने पहले ही डेथ हुई थी. फिजिशियन ने उन्हें कहा कि surviving के लिटल चांसेस है. लेकिन मिसेज डी. ने haar नहीं maani वो डीटरमाइंड थी कि वो अपने हजबैंड की छोटी सी रिटेल स्टोर को चलाकर अपने बेटे को कॉलेज भेजेगी. उन्हें कई सारे ऑपरेशंस करवाने पड़े. और हर टाइम डॉक्टर यही बोलता था कि उनके पास अब कुछ ही मंथ्स बचे है. उनका कैंसर कभी भी पूरी तरह ठीक नहीं हुआ, लेकिन वो ”कुछ मंथ्स” इतने लम्बे खींचे कि इस तरह बीस साल गुज़र गए. मिसेज डी ने अपने बेटे को कॉलेज ग्रेजुएट होते हुए देखा. लेकिन उसके सिक्स वीक बाद ही उनकी डेथ हो गयी. अपने बेटे के साथ रहने के उनके गोल ने उन्हें इतनी स्ट्रेंग्थ दी थी कि वो इतना dard sehan कर पाई और अपनी होपलेस कंडिशन के बावजूद अपने बेटे को कॉलेज भेजने का ड्रीम पूरा कर पाई. जब आपको पता होता है कि आपका गोल क्या है, आपकी मंजिल क्या है तो आप अपने सामने एक क्लियर पाथ इमेज करने लगते है. लाइफ में गोल सेट करने है तो टेन इयर्स का गोल प्लान लिखो और उसे ट्रेक करते रहो. एक टाइम में एक ही प्लान पर काम करो. अपने डेली और वीकली गोल्स सेट करो. और ऐसा करने से आपको पता चलेगा कि आप कितने बैटर पर्सन और अचीवर बन सकते है.

14. Next priniple hame seekhaata hai ki
हाउ टू थिंक लाइक अ लीडर (HOW TO THINK LIKE A LEADER
प्रिंसेस डायना को ब्रीटिश रोयेलिटी का एक इन्फ्लूएंशल मेम्बर माना जाता था. साल 1980 में जब एड्स (AIDS) के बारे में लोगो में pata chalna start hua तो लोगो में एड्स का डर फैल गया था, लोग एड्स के पेशेंट्स se dur hi rehna pasand karte the क्योंकि उस टाइम पर लोगो को ये लगता था कि सिम्पली किसी को टच करने से या सेम टॉयलेट सीट यूज़ करने से उन्हें भी एड्स हो जाएगा. 
लेकिन अप्रैल 1987 में प्रिंसेस डायना ने एचआईवी और एड्स के शिकार लोगो के लिए यूनाईटेड किंगडम में फर्स्ट यूनिट ओपन की. अपनी विजिट के दौरान उन्होंने एड्स पेशेंट्स के साथ बिना ग्लव्स पहने हैण्ड शेक किया था. उनके इस एक्शन से पूरी दुनिया schoked रह गयी थी लेकिन उनके इस जेस्चर ने इस बीमारी को लेकर हर किसी का nazareya badal दिया था. 
अगर आप लीडर बनना चाहते है तो लीडर की तरह सोचो. अपने काम में और एक्श्न्स में ह्यूमन बनो, लोगो को ache dhang se treat karo. प्रोग्रेसिव वे में सोचना सीखो और खुद को इवैल्यूएट करने का टाइम निकालो. जब आपको अपनी स्ट्रेंग्थस और वीकनेस के बारे में मालूम होगा तभी आप एक बेस्ट लीडर बन सकते हो. 

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